देवभूमि उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। संस्कृत भाषा को देववाणी भी कहते हैं। आधुनिकता ने देवभूमि और देवभाषा को सर्वाधिक हानि पहुंचायी है। ज्वालपादेवी के परमभक्त भक्त जिन्होंने श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति का गठन 1969 में किया, उन्हें यह बात कष्टदायी लगी कि देवभूमि के लोग अपनी संस्कृति से विमुख हो रहे हैं। उसका कारण है पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव। अपनी संस्कृति को संरक्षित करने के उद्देश्य से इन महानायकों ने विचार किया कि क्यों न संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए संस्कृत शिक्षण की व्यवस्था ज्वालपा धाम में कई जाय?
समिति के पुराने अभिलेखों, समय समय पर प्रकाशित पुस्तिकाओं और स्मारिकाओं के अध्ययन के बाद जो तथ्य मिले उन्हें एक नए अभिलेख के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। इनमें 27 वर्षों (1991-2018) तक सचिव पद का दायित्व संभालने वाले स्क्वाडरेंन लीडर (से.नि.) बुद्धि बल्लभ थपलियाल (अब स्वर्गीय) द्वारा उपलब्ध करायी गयी जानकारी भी शामिल है।
1 जुलाई सन 1973 में श्रीज्वालपाधाम संस्कृत विद्यालय की स्थापना गुरुकुल पद्धति के अनुरूप की गई। प्रथमा कक्षा से संस्कृत शिक्षा का श्रीगणेश हुआ। 1974 में इस विद्यालय को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी ने मान्यता प्रदान की। यह विद्यालय सन 1976-77 में अनुदान सूची में शामिल किया गया और तत्कालीन प्रथमा (जूनियर हाई स्कूल) स्तर के अनुसार एक प्रधानाचार्य और तीन सहायक अध्यापकों के पदों को शासन से स्वीकृति और मान्यता मिली। सन 1977 में ही पूर्वमध्यमा (हाई स्कूल) व उत्तरमध्यमा (इंटर मीडिएट) की स्थायी मान्यता प्राप्त हुई। आरम्भ में शासन द्वारा इन कक्षाओं को पढ़ाने के लिए अध्यापकों के कोई पद सृजित नही किये गए। 1984 में अध्यापकों के चार पद सृजित किये गए। संस्कृत साहित्य और व्याकरण के दो पद, अंग्रेज़ी और आधुनिक विषय के एक-एक पद। इन पदों पर नियुक्तियां हुई लेकिन नियुक्त अध्यापकों की सेवानिवृत्ति के बाद केवल एक अध्यापक की नियुक्ति हो पायी। विद्यालय की शिक्षण व्यवस्था के लिए संस्कृत शिक्षा विभाग उत्तराखंड द्वारा एक प्रधानाचार्य नियुक्त है। वर्तमान में (2021 से) तीन अध्यापकों का मानदेय (रुपये 30 हज़ार प्रत्येक) राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान द्वारा किया जा रहा है। अन्य पदों पर अध्यापन के लिए अध्यापकों की वेतन व्यवस्था श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति ही करती आ रही है।
केवल मध्यमा (इंटर मीडिएट) तक संस्कृत शिक्षा उपलब्ध करवाने का मतलब अधूरे रास्ते का सफर। माँ ज्वालपा के आशीर्वाद से समिति ने बीड़ा उठाया और वर्ष 1996 में ज्वालपाधाम आदर्श संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कर दी। वर्तमान (2022) में भी इस महाविद्यालय में शास्त्री (स्नातक उपाधि) तक की शिक्षा प्रदान की जा रही है। इसकी मान्यता राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (केंद्रीय विश्वविद्यालय) से प्राप्त की गई। सन 2015 में महाविद्यालय को उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय (हरिद्वार) से महाविद्यालय स्तर की परीक्षाएं संचालित करने की मान्यता प्राप्त हुयी लेकिन इनके शिक्षण की कोई व्यवस्था सरकार ने नही की। निकट भविष्य में आचार्य स्तर (स्नातकोत्तर) की व्यवस्था पर समिति विचार कर रही है। शिक्षा सत्र 2016-17 से महाविद्यालय के दो अध्यापकों को मानदेय राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान द्वारा दिया जा रहा है, लेकिन यह अध्यापकों को दिए जा रहे वेतन के लिए अपर्याप्त है। हाल ही में महाविद्यालय के लिए समिति द्वारा योग्य प्रधानाचार्य की नियुक्ति (2022 से] की गई है।
शेष व्यवस्था श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति दानदाताओं के सहयोग से पूरा करती है।
1. संस्कृत विद्यालय और महाविद्यालय में संस्कृत शिक्षा ग्रहण कर रहे सभी विद्यार्थियों को शिक्षा निशुल्क प्रदान की जाती है। इसके अलावा पाठ्यपुस्तकें, स्टेशनरी, भोजन एवं आवास व्यवस्था भी समिति की ओर से निशुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं।
2.भोजनालय में एक पाचक (रसोइया), विद्यालय व छात्रावास की सफाई/ देखभाल के लिए एक परिचारक नियुक्त है। अन्य व्यवस्था के लिए प्रबंधक हैं।
3.समय समय अनेक दानदाता छात्रों को उपहार स्वरूप भी कुछ न कुछ देते हैं। विद्यालय समय के बाद पूजा-पाठ संबंधी आयोजनों में भाग लेकर विद्यार्थी व्यवहारिक प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लेते हैं।
4. श्रीज्वालपाधाम संस्कृत विद्यालय में विद्यार्थियों के शारीरिक व्यायाम व खेलकूद के लिए उत्तम मैदान है। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1983-84 में संस्कृत विद्यालय से सटा विस्तृत क्रीड़ास्थल बनाया। मंडलीय शिक्षा उपनिदेशक पौड़ी गढ़वाल ने वर्ष 1993-94 में संस्कृत भाषा मे वाक व निबंध प्रतियोगिता का मंडलीय विद्यालयों का कार्यक्रम इसी स्थल पर किया गया। इसी मैदान में वार्षिक कार्यक्रम और अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे पूर्व छात्र सम्मेलन, समिति का स्वर्णजयंती समारोह आदि। इस मैदान में कई बार जिलास्तरीय खेलकूद प्रतियोगिताएं आयोजित हो चुकी हैं।
5.संस्कृत विद्यालय और महाविद्यालय वार्षिक परीक्षा का भी चयनित केंद्र है।
4. विद्यार्थियों को कम्प्यूटर सीखने के लिए एक प्रशिक्षित अध्यापक नियुक्त है। साथ ही प्रशिक्षित योग गुरु द्वारा प्रतिदिन सुबह योग सिखाये जाते हैं। विद्यार्थी संगीत भी सीखें इसके लिए संगीत शिक्षक नियुक्त हैं। विद्यालय स्तर पर अंग्रेज़ी, हिंदी, गणित, सामाजिक विज्ञान आदि सभी विषय पढ़ाये जाते हैं।
5. समिति का प्रयास है कि इस संस्था में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का बहुमुखी विकास हो, इसलिए विद्यालयी पाठ्यक्रम के साथ साथ चरित्र निर्माण व व्यावहारिक ज्ञान वृद्धि के प्रयास भी किये जाते हैं। जैसे-स्तवन, कीर्तन में भाग लेना, धाम पर आयोजित विद्वानों, संतों के प्रवचन सुनना, दैनिक डायरी लिखना, मौनव्रत, उपवास रखना, ब्रह्म मुहूर्त में उठना, शौच, स्नान, योग, संध्या, प्राणायाम, स्वास्थ्य ज्ञान प्राप्त करना, वृद्ध और जरूरतमंद की सेवा करना। मंदिर में आरती में भाग लेना। रात को 10 बजे तक सो जाना। आदि।
6. संस्कृत शिक्षा, शिक्षणेत्तर गतिविधियों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं की देखरेख का दायित्व समिति के एक अनुभवी चयनित उपाध्यक्ष, प्रबंधक की भूमिका निभाते हुए करते हैं।
7. वर्ष 2021 तक लगभग 630 विद्यार्थी स्नातक उपाधि उत्तीर्ण कर देश भर में ज्वालपाधाम संस्कृत विद्यालय /महाविद्यालय की प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं।
8. विद्यालय स्तर पर वार्षिक परीक्षाओं में उत्तम परिणाम (60 प्रतिशत से अधिक अंकों के साथ उत्तीर्ण) लाने पर प्रोत्साहनकर्ताओं द्वारा उचित धनराशि से सम्मानित भी किया जाता है।
चिड़ी चोंचभर ले गई, नदी न घटियो नीर
दान दिए धन ना घटे कह गए दास कबीर।।
श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति की जब 1969 में स्थापना (गठन) की गई उन महान लोगों के विचार हिमालय से ऊंचे थे। जेब मे पैसा नही था। लेकिन सपना था, उत्साह था। केवल पिछले 50 वर्षों में लाखों रुपये की संपत्ति का निर्माण ज्वालपा धाम में हुआ है। विद्यालय भवन, महाविद्यालय भवन, पाकशाला, छात्रावास, खेल का मैदान, अतिथि गृह और धर्मशालाएं। बच्चों को निशुल्क – भोजन शिक्षा, पाठ्य सामग्री, ड्रेस और कई अन्य सुविधाएं। यह सब माँ ज्वालपा के उदारमना भक्तों और श्रद्धालुओं के कारण संभव हो सका। समिति में कार्यरत सदस्य अधिकतर सेवानिवृत अनुभवी लोग हैं। घर परिवार के दायित्वो को पूराकर लोकहित में समिति से जुड़े हैं। कोई सदस्य समय और अनुभव बांट रहा है तो समाज का कोई भाई आर्थिक सहायता कर रहा है।
1.श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति की यह कामना है कि ज्वालपा धाम में माँ ज्वालपा का दिव्य और भव्य मंदिर बनें, जो आकर्षक भी हो और उसमें आध्यात्मिकता को व्यापक रूप स्थान मिले। विद्वानों, बुद्धिजीवियों और चिंतकों के लिए यह स्थान ऊर्जा का केंद्र बने।
अभी श्री ज्वालपा धाम संस्कृत विद्यालय में कक्षा 6 से 12वीं तक संस्कृत भाषा मे शिक्षा प्रदान करने जुलाई 1973 से व्यवस्था है। शास्त्री स्तर (स्नातक स्तर) तक संस्कृत शिक्षा प्रदान करने के लिए 1996 से आदर्श संस्कृत महाविद्यालय है। समिति के लक्ष्यों में महाविद्यालय में आचार्य स्तर (स्नातकोत्तर) तक शिक्षा व्यवस्था स्थापित करना है। समिति के प्रयास हैं कि शिक्षा सत्र 2022-23 से आचार्य स्तर तक कि पढ़ाई भी शुरू की जाय।
2.समिति की भावी योजनाओं में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की शिक्षा हेतु अलग से महाविद्यालय, प्रशिक्षण केंद्र/ आयुर्वेदिक शोध केंद्र स्थापित करना भी है।
3.यद्यपि योग प्रशिक्षण की व्यवस्था है और संगीत शिक्षण भी आंशिक रूप से किया जाता है लेकिन समिति इस क्षेत्र में भी सुदृढ व्यवस्था करने का विचार करती है।
4.निराश्रित वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम की व्यवस्था स्थापित करना भी समिति की भावी योजनाओं में है।
5. क्षेत्र में औषधीय वनस्पतियों को विकसित करना और वनस्पतियों का स्थानीय स्वरोजगार के लिए कार्य करना।
6. लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए कार्य करना ताकि उत्तराखंड के लोक संगीत, कला, नृत्य, नाटक व लोक ज्ञान-विज्ञान को संरक्षित किया जा सके।
7. मंदिर के तट को स्पर्श करती नाबालका नदी के तटों के सौंदर्य को बढ़ाने का प्रयास करना तथा इस नदी में तैरने (swimming) के लिए तरणताल की व्यवस्था करना ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिले।
इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए माँ ज्वालपा के प्रिय भक्त आगे आएंगे और इस माध्यम से भी ज्वालपा धाम को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में बढ़चढ़ कर भागीदार बनेंगे। ऐसा निवेदन है।
दानदाता मंदिर समिति के बैंक खाते में अपना अंशदान सीधे भेज सकें इस बात की व्यवस्था की गई है। समिति को दिए गए दान पर आयकर निर्धारित नियमों के अनुसार छूट का प्रावधान है।