विकास कार्य

यात्री सुविधाएं संस्कतित शिक्षा व विकास कार्य

 

 

1. यात्री सुविधाएं-श्रीज्वालपा देवी मन्दिर समिति के गठन (1969) के बाद ज्वालपा धाम में पुण्य के पहले भागीदार अणेथ के श्री बूथा राम अणथ्वाल (अब स्वर्गीय) ने धर्मशाला निर्माण हेतु 330 वर्ग गज भूमि ज्वालपा देवी मंदिर समिति को दान की। श्रीमती सुरेशी देवी ने पहली धर्मशाला निर्माण के लिए 5,500 रुपये दिए। उत्तर प्रदेश सरकार  ने एक पर्यटक विश्राम गृह का निर्माण सन 1982 में करवाया। रामेश्वरी धर्मशाला का निर्माण श्री कुलानंद थपलियाल ने किया। पैन्यूली धर्मशाला का निर्माण ठेकेदार जयदेव पैन्यूली ने किया। मार्कण्डेय अतिथिशाला के लिए श्री गोविंद प्रसाद थपलियाल व उनके बंधुओं ने आर्थिक सहायता दी। नौटियाल यात्री निवास का निर्माण श्री हरिप्रसाद ने अपने माता-पिता की स्मृति में करवाया। गोविंद छात्रावास का निर्माण श्री गोविंद प्रसाद थपलियाल (ग्राम बंगानी/दर्शनीगेट देहरादून) ने करवाया उन्होंने एक लाख रुपये भी समिति को पठार्थी की व्यवस्था के लिए दिए। वाचनालय के लिए 40 हज़ार रुपये भी उन्होंने दिए। श्री चंद्रमोहन थपलियाल ने अपनी पत्नी स्व. कीर्ति देवी की स्मृति में यात्री निवास का निर्माण करवाया।

 

  कर्नल (रि) शांति प्रसाद थपलियाल (अध्यक्ष मंदिर समिति, ग्राम ईड़ा/नोएडा) ने अपनी पत्नी स्व. विमला देवी थपलियाल की स्मृति में एक यात्री निवास का निर्माण कराया। डॉ. उमाशंकर थपलियाल ने अपनी माताओं स्व. श्रीमती शकुंतला देवी एवं स्व. पूर्णा देवी तथा पिता स्व. नारायण दत्त थपलियाल की स्मृति में यात्री निवास बनवाया।

 

श्री प्रशांत बिष्ट ने अपने दादा स्व. कुंवर सिंह बिष्ट एवं स्व. दादी की स्मृति में यात्री निवास बनवाया। श्री दिगंबर दत्त थपलियाल ने अपने स्वर्गीय माता-पिता श्रीमती सत्यभामा और श्री सुरेशानंद थपलियाल की स्मृति में यात्री निवास बनवाया। दिल्ली भवन का निर्माण ज्वालपा देवी उपसमिति दिल्ली ने  करवाया। यात्री कक्ष (आधुनिक) स्क्वा. लीडर (रि) स्व. बुद्धिबल्लभ थपलियाल (खातस्यूं श्रीकोट/नोएडा) ने अपने माता-पिता की स्मृति में यात्री निवास बनवाया। डॉ. उमा प्रसाद थपलियाल (खातस्यूं श्रीकोट/नोएडा), श्री दिनेश थपलियाल और श्री ललिता प्रसाद थपलियाल ने अपने परिजनों की स्मृति में यात्री निवास बनवाया।

 

 

(2) विद्यालय, महाविद्यालय भवन, छात्रावास आदि-

 

 

  1. अध्यापक निवास मंदिर समिति द्वारा वर्ष 1974-75 में किया गया।
  2. पाकशाला-विद्यार्थी भोजनालय का निर्माण वर्ष 1974-75 में मंदिर समिति द्वारा किया गया।
  3. विद्यालय भवन (प्रथम) का निर्माण वर्ष 1977-78 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी गयी आर्थिक सहायता और मंदिर समिति के आर्थिक सहयोग से किया गया।
  4. विद्यालय भवन (द्वितीय) इस भवन का निर्माण मंदिर समिति द्वारा वर्ष 1980-81 में किया गया।
  5. मिलन केंद्र- इस केंद्र के निर्माण के लिए एस एस बी पौड़ी की आर्थिक सहायता मिली।
  6. लघु क्रीड़ास्थल के निर्माण के लिए एस एस बी पौड़ी ने आर्थिक सहायता प्रदान की।
  7. संस्कृत विद्यालय का छात्रावास का निर्माण समिति के संपोषकों और दानदाताओं के आर्थिक सहयोग से वर्ष 1992-93 में किया गया।
  8.  

  (3) तोरण द्वारों का निर्माण

 

 

मंदिर परिसर तक कई द्वार बनाये गए हैं। जिनके निर्माण में भी जन सहयोग ही प्रमुख रहा।

1.सिंह द्वार- यह भव्य द्वार राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा हुआ है। इसका निर्माण गढ़वाल मोटर ऑनर्स यूनियन (जी.एम.ओ.यू) द्वारा सन 1972-73  में किया गया।

2. विजय द्वार- जब सिंह द्वार से मंदिर की ओर बढ़ते हैं तब सीढ़ियों के निकट विजय द्वार दिखाई देता है। इस द्वार का निर्माण गढ़वाल राइफल लैंसडौन द्वारा सन 1971-72 में किया गया है।

3.श्री जयंती प्रसाद थपलियाल ने अपनी स्वर्गीय पत्नी …… की स्मृति में विद्यालय क्रीड़ा प्रांगण द्वार सन….बनवाया गया है।

4.श्री नारायणदत्त थपलियाल (समिति के संस्थापक प्रधान) ने अपनी पत्नी स्व. श्रीमती शकुंतला देवी  की स्मृति में (नदी की ओर जानेवाला मार्ग) गंगा द्वार का निर्माण सन 1979-80 में करवाया।

5.श्री सुरेशानंद थपलियाल (पौड़ी) ने अपनी पत्नी स्वर्गीय श्रीमति सत्यभामा देवी की स्मृति में सन 1979-80  शिव द्वार (मय आंगन व सीढियां) बनवाया।

6.श्रीमती गोदाम्बरी देवी (ग्राम..) तथा मंदिर समिति ने यात्री निवास परिसर का प्रवेश द्वार सन 1979-80 बनवाया।

 

 

(3) लोक निर्माण विभाग पौड़ी का योगदान

 

 

1.लोक निर्माण विभाग, पौड़ी गढ़वाल ने सन 1972 में मुख्यमार्ग पर यात्रियों की सुविधा के लिए एक आश्रय स्थल (शेड) का निर्माण किया। इस विभाग ने 1973 में पेय जल योजना का निर्माण किया। इस योजना में जिला परिषद पौड़ी गढ़वाल ने भी सहयोग किया।

2.जिला परिषद गढ़वाल ने सन 1972 में मंदिर के लिए अश्व मार्ग  व पुरुष स्नानघाट का निर्माण करवाया। सन 1974 में नदी तट पर शोभन स्थली के निर्माण करवाया।

3.श्रीज्वालपा देवी मंदिर समिति ने ज्वालपा धाम पर जन सहयोग से अनेक कार्य किये जिनमे से कुछ हैं-

भैरवनाथ मंदिर का निर्माण, विद्यालय भवन का निर्माण, एक छात्रावास, क्रीड़ास्थल, एक विशेष अतिथि गृह, यज्ञशाला-हवनकुंड, महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग अलग स्नानघाट, शौचालय, पक्का पहुँचमार्ग, शोभन स्थली का निर्माण, मंदिर के प्रांगण का विस्तार, वृक्षारोपण, जल और विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था आदि प्रमुख हैं।

 

 

4 सरकार, सामाजिक संगठनों, व निजी स्तर पर सहयोग-

 

 

1.जिला परिषद गढ़वाल द्वारा सन 1973 में नदी तट पर बांध निर्माण किया गया।

2.इसी वर्ष (1973) मंदिर समिति तक आनेवाली पक्की सीढ़ियों के निर्माण (श्री परमानंद पैन्यूली के सहयोग से) किया।

3.पर्वतीय क्षेत्रीय विकास परियोजना (हाडा)  के 1977 में सिंचाई नहर।

4.नियोजन विभाग गढ़वाल ने उद्यान की सिंचाई के लिए एक हौद बनवाया।

5. 1977 में विद्युत वितरण विभाग गढ़वाल ने धाम का विद्युतीकरण किया।

6. 1979 में भूमि संरक्षण विभाग ने उद्यान भूमि का समतलीकरण का कार्य किया।

7.एस. एस. बी. पौड़ी ने मिलन केंद्र व लघु क्रीड़ास्थल का निर्माण करवाया।

8. 1977 में ब्रिगेडियर कपिल मोहन ने प्रवचन शाला का निर्माण करवाया।

9.पर्वतीय विकास विभाग (उत्तर प्रदेश) ने वर्ष 1983 में महिला स्नानघाट का निर्माण करवाया।

10.सड़क से मंदिर तक छायापथ का निर्माण हंस फाउंडेशन द्वारा सन 2014 में करवाया गया।

 

 

(5) विशेष दानदाता-

 

 

1 सेठ धनीराम, शुगर मिल, बसी किरतपुर संस्कृत विद्यालय, भवन निर्माण में आर्थिक सहयोग  किया।

2.गोविंद छात्रावास का निर्माण श्री गोविंद प्रसाद थपलियाल, दर्शनी गेट देहरादून (मूल निवासी-ग्राम बंगानी, मनियार स्यूं) ने करवाया। उन्होंने रुपये एक लाख मात्र की राशि फिक्सड डिपॉजिट के लिए भी दी। इसका उद्देश्य था व्याज की राशि से पाठर्थी पंडित का वेतन देना।

3.श्री बूथा राम जी अणथ्वाल (स्वर्गीय), ग्राम नौगांव, पिपली पानी ने ज्वालपा देवी मंदिर से सटी तीन नाली (720 वर्ग गज) भूमि मंदिर समिति को दान दी।

4. श्रीकृतराम थपलियाल (ग्राम खैड़) से 11 नाली 3 मुठ्ठी जमीन समिति ने खरीदी।

5. माता मंगला जी, हंस फाउंडेशन की ओर से विद्यालय में छात्रों के लिए भोजन व्यवस्था की जाती है। समिति उदारमना दानदाताओं का आभार प्रकट करती है।

 

 

चिंतन के धरातल पर भावी योजनाएं-

 

 

चिड़ी चोंचभर ले गई, नदी न घटियो नीर

दान दिए धन ना घटे कह गए दास कबीर।।

 

 

 श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति की जब 1969 में स्थापना (गठन) की गई उन महान लोगों के विचार हिमालय से ऊंचे थे। जेब मे पैसा नही था। लेकिन सपना था, उत्साह था। केवल पिछले 50 वर्षों में लाखों रुपये की संपत्ति का निर्माण ज्वालपा धाम में हुआ है। विद्यालय भवन, महाविद्यालय भवन, पाकशाला, छात्रावास, खेल का मैदान, अतिथि गृह और धर्मशालाएं। बच्चों को निशुल्क – भोजन शिक्षा, पाठ्य सामग्री, ड्रेस और कई अन्य सुविधाएं। यह सब माँ ज्वालपा के उदारमना भक्तों और श्रद्धालुओं के कारण संभव हो सका। समिति में कार्यरत सदस्य अधिकतर सेवानिवृत अनुभवी लोग हैं। घर परिवार के दायित्वो को पूराकर लोकहित में समिति से जुड़े हैं। कोई सदस्य समय और अनुभव बांट रहा है तो समाज का कोई भाई आर्थिक सहायता कर रहा है।

 

 

1.श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति की यह कामना है कि ज्वालपा धाम में माँ ज्वालपा का दिव्य और भव्य मंदिर बनें, जो आकर्षक भी हो और उसमें आध्यात्मिकता को व्यापक रूप स्थान मिले। विद्वानों, बुद्धिजीवियों और चिंतकों के लिए यह स्थान ऊर्जा का केंद्र बने।

अभी श्री ज्वालपा धाम संस्कृत विद्यालय में कक्षा 6 से 12वीं तक  संस्कृत भाषा मे शिक्षा प्रदान करने जुलाई 1973 से व्यवस्था है। शास्त्री स्तर (स्नातक स्तर) तक संस्कृत शिक्षा प्रदान करने के लिए 1996 से आदर्श संस्कृत महाविद्यालय है। समिति के लक्ष्यों में महाविद्यालय में आचार्य स्तर (स्नातकोत्तर) तक शिक्षा व्यवस्था स्थापित करना है। समिति के प्रयास हैं कि शिक्षा सत्र 2022-23 से आचार्य स्तर तक कि पढ़ाई भी शुरू की जाय।

2.समिति की भावी योजनाओं में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की शिक्षा हेतु अलग से महाविद्यालय, प्रशिक्षण केंद्र/ आयुर्वेदिक शोध केंद्र स्थापित करना भी है।

3.यद्यपि योग प्रशिक्षण की व्यवस्था है और संगीत शिक्षण भी आंशिक रूप से किया जाता है लेकिन समिति इस क्षेत्र में भी सुदृढ व्यवस्था करने का विचार करती है।

4.निराश्रित वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम की व्यवस्था स्थापित करना भी समिति की भावी योजनाओं में है।

5. क्षेत्र में औषधीय वनस्पतियों को विकसित करना और वनस्पतियों का स्थानीय स्वरोजगार के लिए कार्य करना।

6. लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए कार्य करना ताकि उत्तराखंड के लोक संगीत, कला, नृत्य, नाटक व लोक ज्ञान-विज्ञान को संरक्षित किया जा सके।

7. मंदिर के तट को स्पर्श करती नाबालका नदी के तटों के सौंदर्य को बढ़ाने का प्रयास करना तथा इस नदी में तैरने (swimming) के लिए तरणताल की व्यवस्था करना ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिले।

 

 

इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए माँ ज्वालपा के प्रिय भक्त आगे आएंगे और इस माध्यम से भी ज्वालपा धाम को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में बढ़चढ़ कर भागीदार बनेंगे। ऐसा निवेदन है।

 

 

दानदाता मंदिर समिति के बैंक खाते में अपना अंशदान सीधे भेज सकें इस बात की व्यवस्था की गई है। समिति को दिए गए दान पर आयकर निर्धारित नियमों के अनुसार छूट का प्रावधान है। 

 

 

समिति की ओर से ज्वालपा धाम से संबंधित उपरोक्त इतिहास, परंपराएं, संस्कृति और विकास कार्यों का संकलन समिति के अध्यक्ष कर्नल शांति प्रसाद थपलियाल (सेनि), पूर्व मुख्य सचिव स्क्वाड्रन लीडर बुद्धिबल्लभ थपलियाल  (सेनि) द्वारा प्रदत्त दस्तावेजों, मौखिक जानकारियों और लेखक के द्वारा प्रयास किये गए विभिन्न स्रोतों पर आधारित है। इसका उद्देश्य सर्व सामान्य को ज्वालपा धाम में मंदिर समिति के कार्यकलापों से अवगत कराना है इसलिए बहुत से ऐसे मुद्दे जो भविष्य में कांटे की तरह चुभें उनकी अनदेखी भी की गई है। कार्य कराने वाले हम नही, दीप्त ज्वालेश्वरी, माँ ज्वालपा देवी है। उनकी कृपा बनी रहे ताकि विश्व कल्याण में ज्वालपा धाम का अवदान भी रहे।